दिसम्बर २००५
शास्त्र पढ़ना
इसलिए भी आवश्यक है कि जैसा-जैसा शास्त्रों में लिखा है साधक को जब वैसा अनुभव
होता है तो उसका उत्साह बढ़ जाता है. सत्य एक ही है वह जिसके भीतर प्रकट होगा समान
रूप से होगा, साधक वही है जिसका मन सदा जीवंत रहता है. सदा तृप्ति और उछाह से भरा.
पता नहीं कब कौन सा सत्य किस रूप में आकर रास्ता दिखा जाये. जो सीखना चाहता
है, हर पल उसके लिए नई सम्भावनाओं के द्वार खोल देता है. जीवन नित नया हो रहा
है, इस नूतनता को अनुभव करना ही आनंदी भाव में स्थित होना है. यह सृष्टि कितनी
पुरानी है पर हर नव शिशु के लिए सब कुछ एक बार फिर नया हो जाता है, साधक का मन भी
बालवत् होता है.
....पता नहीं कब कौन सा सत्य किस रूप में आकर रास्ता दिखा जाये.
ReplyDeleteजीवन नित नया हो रहा है, इस नूतनता को अनुभव करना ही आनंदी भाव में स्थित होना है. यह सृष्टि कितनी पुरानी है पर हर नव शिशु के लिए सब कुछ एक बार फिर नया हो जाता है, साधक का मन भी बालवत् होता है.
ReplyDeleteसुंदर मनोहर विचार
भजन नहीं भोजन नहीं , स्वाध्याय नहीं शयन नहीं ।
ReplyDeleteराहुल जी, वीरू भाई, व शकुंतला जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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