Thursday, April 2, 2015

सहज हुआ सो मीठा होए

अक्तूबर २००८ 
जीवन कितना अद्भुत है यह बात वही अनुभव कर सकता है जिसने एक बार भी आत्मिक सुख का अनुभव किया हो. अन्यथा हम सभी एक मोह की नींद में असत्य को ही सत्य मानकर सुख-दुखी होते रहते हैं. आत्मदर्शी के लिए जगत में रहना कितना सहज हो जाता है, जैसे कोई पक्षी अप्रयास गगन में तिरता हो. जैसे कोई मीन अनायास ही जल में तैरती हो. जैसे कोई नवजात शिशु सहज ही अपना मुँह खोल अंगड़ाई लेता हो. जैसे सुबह अपने आप हो जाती है और रात भी तारों व चाँद सहित आकाश में अपना साम्राज्य सजाती हो !

2 comments:

  1. बिलकुल सटीक चिंतन...

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  2. स्वागत व आभार कैलाश जी..

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