२५ अक्तूबर २०१७
जगत में रहते हुए हम इसके
प्रभावों से अलिप्त कैसे रहें, अध्यात्म विद्या इसी कला को सिखाती है. हर जीव को
अपने पूर्व कर्मों के अनुसार जन्म और जीवन की अच्छी-बुरी परीस्थितियां मिली हैं.
साथ ही उसे नये कर्म करने की स्वतन्त्रता भी मिली है. यदि कोई इस बात से अनभिज्ञ
है अथवा संस्कारों के अनुसार ही जीवन प्रवाह में बहता जा रहा है, तो वह अपने भावी
जीवन को भी उन्हीं के अनुसार ढाल रहा है. इसी को जन्म-मरण का चक्र कहते हैं,
जिसमें गति तो है पर दोहराव है. अध्यात्म ऊपर उठने की कला सिखाता है, जिससे हम भविष्य
में उन दुखों से बच सकते हैं जो पूर्व में मिले थे. परमात्मा के प्रति प्रेम और
स्वयं के चिन्मय स्वरूप का बोध हमें इसी विद्या से होता है. जिसके कारण सद्कर्मों
को करते हुए हम अपनी ऊर्जा का सदुपयोग करना सीखते हैं.
बहुत सही
ReplyDeleteलेकिन जानते हुए भी तो इंसान अनजान बना रहता है आखिरी तक
स्वागत व आभार कविता जी, जानते हुए भी हम अनजान बने रहते हैं इसी कारण आनन्द को उपलब्ध नहीं हो पाते.
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