१२ नवम्बर २०१८
दीपावली का उत्सव मधुर
स्मृतियों से उर आंगन को सजा कर विदा हो गया. दीपकों की झालरें अब नजर नहीं आतीं,
पटाखों का शोर भी कम हो गया है. जीवन उसी पुराने क्रम में लौट आया है. मौसम में
बदलाव स्पष्ट नजर आने लगा है. सर्दियों के वस्त्रों को धूप दिखाई जा रही है, और
सूती वस्त्रों को आलमारी में सहेज कर रखने के दिन आ गये हैं. बाहर के मौसम की तरह
मन का मौसम भी बदलता रहता है. कभी सतोगुणी मन परमात्मा के प्रति समर्पण भाव से भर
जाता है तो कभी रजोगुण कर्म में रचाबसा देता है. तमोगुण को बढ़ने का अवसर मिल जाये
तो अच्छे-भले दिन में अलस भर जाता है, फिर कहीं चैन नहीं मिलता. साधक का लक्ष्य नियमित
साधना के द्वारा तीनों गुणों के पार निकल जाना है, फिर तीनों का मालिक बनकर या
तीनों का साक्षी बनकर वह सदा मुक्त ही बना रह सकता है.
साधक के लक्ष्य को स्पष्ट निर्धारित करती आपकी सार्थक पोस्ट ...
ReplyDeleteस्वागत व आभार दिगम्बर जी !
Deleteबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
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