१४ नवम्बर 2018
भगवद् गीता में कृष्ण कहते
हैं, जो न किसी से उद्ग्विन होता है न किसी को उद्ग्विन करता है, वह मुझे प्रिय
है. इसका अर्थ हुआ हम जगत में इस तरह रहना सीख लें कि किसी को हमसे कोई परेशानी न
हो, और न जगत ही हमारे लिए कोई समस्या बने. प्रगाढ़ नींद में ऐसा ही होता है, जगत
होते हुए भी नहीं रहता और हम जगत के लिए अदृश्य हो जाते हैं. समाधि में भी ऐसा
होता है, जगत का भान नहीं रहता और देह भान भी नहीं रहता, देह से ही जगत आरम्भ होता
है. इसका अर्थ हुआ कि जगते हुए भी समाधि में बने रहने की कला आ जाये तभी यह सम्भव
है. समाधि के लिए योग साधना में बताये यम, नियम का पालन पहला कदम है, आसन,
प्राणायाम, प्रत्याहार दूसरा तथा धारणा व ध्यान के तीसरे कदम के बाद समाधि तक
पहुंचा जा सकता है. इसीलिए कृष्ण बार-बार अर्जुन को योगी बनने के लिए कहते हैं.
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