Wednesday, November 14, 2018

मुक्तिबोध बने साधन सुख का


१५ नवम्बर २०१८ 
चेतना यदि मुक्त है तो ही स्वयं का अनुभव कर पाती है. मन की गहराई में छिपे प्रकाश की झलक उसे मिलती है. अंतर सुख की धार में भीग कर अखंड शांति का अनुभव उसे मिलता है. मुक्ति का स्वाद जिसने एक बार भी चख लिया है वह जगत में रहकर भी बंधा हुआ नहीं है. हम भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए जितना समय व ऊर्जा व्यय करते हैं, उससे आधा भी स्वयं को जानने में नहीं लगाते. हमारे शास्त्रों का मूल मन्त्र है, “असतो मा सद गमय”. हमें उस सत्य तक पहुंचना है जो सदा एक रस है. जगत में रहते हुए सभी कुछ करते हुए भी उस सत्य का अनुभव किया जा सकता है, आवश्यकता है उसके प्रति श्रद्धा भाव जगाने की. शास्त्रों के अध्ययन व संतों के सत्संग से ही भीतर इस परम श्रद्धा का उदय व्यक्ति के भीतर होता है.  

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