Thursday, September 19, 2019

खिला रहे जब मन का फूल



सृष्टि में हर शै एक-दूसरे से जुड़ी है. कोई यहाँ अकेला नहीं है. यदि कोई वास्तव में अपने भीतर एकांत का अनुभव कर लेता है तो उसी क्षण वह सारी सृष्टि से जुड़ जाता है. हम जो अकेलापन अनुभव करते हैं, वह खुद की बनाई हुई सीमाएं हैं जो हमें अपने वातावरण से तोडती हैं, एक सिकुड़े हुए मन को ही अकेलेपन का भय होता है एक खिला हुआ मन सहज ही सबसे अपनेपन का अनुभव करता है. दुःख मन को सीमित करता है और ख़ुशी उसे फैलाती है. पूजा में हम फूल चढ़ाते हैं इसका तात्पर्य है मन भी फूल की तरह खिला रहे. जीवन में प्रतिपल कुछ न कुछ ऐसा घटता है जो हमारे अन्य्कूल नहीं है, किंतु जो मन उसे भी ईश्वर का प्रसाद मानकर स्वीकार कर लेता है, वह उस भीतरी एकांत से जुड़ने की कला सीख लेता है. ऐसा मन समता को प्राप्त होता है.

2 comments:

  1. मन के हारे हार है मन के जीते जीत.
    गहन विचार.

    पधारें- अंदाजे-बयाँ कोई और

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