जब तक मन संकुचित है वह डोलेगा
ही, ऐसा मन अशांति का ही दूसरा नाम है. जो मन दिखावा करता है, तुलना करता है, वह
उद्ग्विन हुए बिना नहीं रहेगा. स्वार्थ से भरा हुआ मन भी अकुलाहट से भर जाता है. विशाल
मन का अर्थ है अमनी भाव में आ जाना. संत कहते हैं अमन हुए बिना समाधान नहीं मिलता.
क्योंकि मन होने का अर्थ ही है अहंता का होना, जो है वह अपने अस्तित्त्व की रक्षा
के लिए अन्य का विरोध करेगा ही, इसीलिए सिर काटने और घर जलाने की बात कबीर कह गये
हैं. मन के मिटे बिना आत्मिक शांति का अनुभव नहीं किया जा सकता. चेतना जब पूर्ण
विश्राम में होती है, अर्थात समाधि में होती है, तब मन खो जाता है. जब हम
विचारधारा में बह जाते हैं मन के प्रभाव में होते हैं, जब हम विचार के साक्षी होते
हैं, अप्रभावित बने रह सकते हैं. किंतु समाधि का अनुभव शून्यता में ही किया जा
सकता है.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (02-10-2019) को "बापू जी का जन्मदिन" (चर्चा अंक- 3476) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार !
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