कृष्ण हमारी आत्मा हैं और अष्टधा प्रकृति ही मानो उनकी
आठ पटरानियाँ हैं। रानियाँ यदि कृष्ण
के अनुकूल रहेंगी तो स्वयं भी सुखी होंगी और अन्यों को भी उनसे कोई कष्ट नहीं होगा।
इसी तरह मन, बुद्धि, अहंकार और पंच तत्व ये आठों यदि आत्मा के अनुकूल आचरण करेंगे तो
देह भी स्वस्थ रहेगी और जगत कल्याण में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होगी। मन से संयुक्त
हुईं सभी इंद्रियाँ ऊर्जा का उपयोग ही करती हैं, मन यदि संसार की ओर ही दृष्टि बनाए
रखता है तो अपनी ऊर्जा का ह्रास करता है. बुद्धि यदि व्यर्थ के वाद-विवाद में अथवा
चिंता में लगी रहती है तब भी ऊर्जा का अपव्यय होता है। जैसे घर में यदि कमाने वाला
एक हो और उपयोग करने वाले अनेक तथा सभी खर्चीले हों तो काम कैसे चलेगा. मन को ध्यानस्थ
होने के लिए भी ऊर्जा की आवश्यकता है, तब ऊर्जा का संचयन भी होता है. यदि दिवास्वप्नों
में या इधर-उधर के कामों में वह उसे बिखेर देता है तो मन कभी पूर्णता का अनुभव नहीं
कर पाता. उसे यदि एक दिशा मिल जाए तबही वह संतुष्टि का अनुभव कर सकता है, वरना जो ऊर्जा
हम नित्य रात्रि में गहन निद्रा में प्राप्त करते हैं, दिन होने पर जल्दी ही खत्म हो
जाती है, और कोई महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए हमारे पास शक्ति ही नहीं होती।
स्वागत व आभार !
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