बुद्ध कहते हैं, प्रमाद मृत्यु है। प्रमाद अर्थात जानते हुए भी कि यह अनुचित है उससे छूटने का प्रयास न करना और जानते हुए भी कि यह सही है, उसे न करना। हम सभी जानते हैं रात्रि में जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, सात्विक और हल्का भोजन, स्वाध्याय, सेवा, सत्संग, नियमित व्यायाम और ध्यान; शारीरिक और मानसिक आरोग्य के लिए जरूरी है, पर क्या इसका पालन करते हैं। मृत्यु के क्षण में जब देह जड़ हो जाती है और चेतन शक्ति बाहर से उसे जरा सा भी हिला नहीं पाती, तब उसे वे पल स्मरण हो आते हैं जब जीवित रहते हुए इस देह को हिलाया जा सकता था, तब श्रम से बचते रहे। जब पैरों में दौड़ने की ताकत थी, हाथों में काम करने की शक्ति थी, मन में चिंतन का बल था, अब यह देह पत्थर की हो गई है, पर उस वक्त जब देह में स्पंदन था, मन को कितनी बार पत्थर सा नहीं बना लिया था, जिससे कोमल भाव झर सकते थे, जिससे मैत्री और करुणा के गीत फूट सकते थे, उससे द्वेष और रोष को उगने दिया था। मृत्यु के बाद वह सब याद आता है जो करना शेष रह जाता है, जो अभी किया जा सकता है, उस सबके प्रति जागना ही प्रमाद से मुक्त होना है।
बहुत सुन्दर और सार्थक।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteसुंदर व सार्थक रचना
ReplyDeleteसादर
स्वागत व आभार !
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