संत कहते हैं, ‘इच्छा, क्रिया और ज्ञान’ आत्मा में ये तीनों शक्तियां हैं. इन तीनों से योग का घनिष्ठ संबंध है. सफलता तब मिलती है जब ये तीनों एक साथ प्रकट होती हैं. कुछ करने की भावना या मात्र इच्छा होना ही पर्याप्त नहीं है, इसे क्रिया के क्षेत्र में उजागर करने की आवश्यकता है. जब हम चाहते हैं कि हमारी इच्छा पूरी हो, ज्ञान और क्रिया शक्ति की भी आवश्यकता है. हर एक में क्रिया शक्ति मौजूद है, हमें इसे समुचित रूप से प्रवाहित करने की जरूरत है अन्यथा यह मन और देह में बेचैनी बढ़ाती है। दिल की धड़कन बढ़ जाती है, कुछ लोग मेज थपकते हैं, कुछ पैर हिलाते हैं, जो उनके भीतर की बेचैनी को ही दिखाता है. जब हम योग साधना और ध्यान करते हैं तभी कर्म और सेवा के क्षेत्र में सफल होते हैं. क्रिया जब ज्ञान से संयुक्त होती है तब प्रसन्नता सहज ही मिलती है। योग से प्राप्त सजगता और सतर्कता का उपयोग किसी और का दोष ढूंढने में इस्तेमाल न करना कर्म की शक्ति को बढ़ाता है। यदि हम इस का निरीक्षण नहीं करते हैं, जीवन में आलस्य और जड़ता छा जाती है. जब कर्म का आदर नहीं होता, जीवन में प्रमाद छा जाता है, इच्छाएं पूरी नहीं होती हैं. सारा ज्ञान व्यर्थ हो जाता है। जब हम ध्यान की स्थिति में विचारों से परे जाते हैं, इच्छा से ज्ञान की ओर, फिर कार्य करना सरल हो जाता है. जो इच्छा, ज्ञान में परिवर्तित हो जाती है, और क्रिया में फलित होती है, उसी से विकास होता है.
इच्छा, क्रिया और ज्ञान’ आत्मा में ये तीनों शक्तियां हैं
ReplyDeleteनिश्चय ही इन तीनों में किसी एक के अभाव में हम अपने किसी भी कार्य को करने में शक्त नहीं हो सकते।
सुंदर रचना
स्वागत व आभार !
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