Thursday, December 17, 2020

भक्ति करे कोई सूरमा

 भक्त कहता है हम मरुथल सा रूखा-सूखा दिल लेकर तेरे द्वार पर आये थे, देखते ही देखते तूने वहाँ हरियाली के अंबार लगा दिए। तेरा नाम भर सुना था, तुझे जानते भी नहीं थे पर जो  खाली दामन साथ लाये थे, उसे भर दिया. जो दिखाई नहीं देते पर जिनकी चमक से मन में ज्योति छा गयी है, वैसे मधुर भावों के अनेक हीरे-मोती तू लुटाता है. दो बूँद ही प्रेम की इस उर ने चाही थी पर कितना कृपालु है तू कि प्रेम के  दरिया बहा दिए. कितने विकारों से भरा था मन, अहंकार के हाथी पर चढ़ कर आया था, पर तू पावन करने वाला है. सारे संबंध  तुझसे ही पनपे हैं, तू पिता बनकर पालता है, माँ बनकर संवारता है, गुरू बनकर राह दिखाता है, मित्र बनकर स्नेह लुटाता है, भाई या बहन बनकर जीवन पथ को सुंदर बनाता है. यह सारी सृष्टि तुझसे ही उपजी है. भक्त को किसी दर्शन, किसी वाद, ता किसी शास्त्र की आवश्यकता नहीं है, उसे समाधि भी नहीं साधनी है, उसे तो भीतर उमड़ते उस प्रेम को एक दिशा देनी है, उस अनंत पर लुटाना है. प्रेम का आदान-प्रदान ही एकमात्र वह कृत्य है जो उसे अस्तित्त्व से जोड़ता है. 


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