जीवन एक यात्रा ही तो है। क्या यह यात्रा मात्र जन्म से मृत्यु तक की यात्रा है ? नहीं, यह यात्रा है जीवन से महाजीवन की, जड़ता से चैतन्यता की। विषाद से प्रसाद की, मूलाधार से सहस्रार की, जीवन से ब्रह्म की यात्रा है यह ! सुख-दुख के द्वन्द्व से आनंद की यात्रा, सापेक्षता से निरपेक्षता की भी। विभाजन से अखंडता की, द्वैत से अद्वैत की यात्रा है। उहापोह से परम विश्रांति की यात्रा भी है। लोभ से उदारता की यात्रा है, क्रोध से होश की भी। कामना से वैराग्य की यात्रा है जीवन तो माया से मायापति की यात्रा भी ! देह का जन्म एक वरदान है, देह की मृत्यु महा-वरदान है। मन का मिटना साधना का परिणाम है। जब मन थम जाता है तब आत्मा की अमरता का परिचय होता है। जिसके बाद लेने का भाव समाप्त हो जाता है और देने का भाव जन्म लेता है। वास्तविक जीवन का आरंभ तभी होता है, जिसे महाजीवन भी कह सकते हैं।
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