शिवलिंग पत्थर से बनाया जाता है। जबकि शिव पदार्थ नहीं हैं, वे निराकार हैं, अमर हैं, शाश्वत हैं। पत्थर का प्रयोग शायद इसी अमर्त्य को दिखाने के लिए किया जाता है क्योंकि देह की अपेक्षा पत्थर अनंत काल तक रह सकता है। शिव का ज्योतिर्लिंग हमारी आत्मा का प्रतीक है। देहें ठोस दिखती हैं उनका रूप और आकार है। जो बना है वह मिटेगा ही। जो जन्मा है वह मरेगा ही। देह जन्मती है फिर मिटती है। इसके भीतर रहने वाली ज्योति ही शिवलिंग का प्रतीक है, जो वास्तव में ठोस है. खुदाई में न जाने कब से बनाए शिवलिंग मिलते हैं, वे नहीं मरते। जब तक सृष्टि है, शिवलिंग की सत्ता रहेगी। उस आत्मज्योति को ही जल चढ़ाते हैं। वही चेतना प्रेम और क्रोध दोनों है। शिव में समाई है शक्ति, जो सृजन करती है। पत्थर के एक-एक परमाणु में में अपार शक्ति है। हमारे भीतर भी अपार शक्ति है, विध्वंसात्मक और सृजनात्मक दोनों ही। दोनों को समुचित उपयोग में लाना है। तीनों गुणों से सम्पन्न है वह शक्ति, इसलिए बेल पत्र चढ़ाते हैं। कंटक चढ़ाते हैं ताकि तमस सीमा में रहे, जल चढ़ाते हैं, ताकि रजस सीमा में रहे। शिव के साथ सभी भूत -प्रेत भी दिखाते हैं, भूत अतीत का प्रतीक है, मन में न जाने कितने जन्मों मे संस्कार हैं, अतृप्त कामनायें हैं जो राक्षस की भांति पीछे लगी हैं। शक्ति उन्हीं का संहार करती है। हर आत्मा का जीवन शिव और शक्ति की लीला है।
जय शिव शंकर।
ReplyDeleteशिवरात्रि की शुभकामनाएं !
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