जीवन में यदि सत्य नहीं है तो हृदय में सत्यनारायण का वास कैसे होगा। हम कई बार मन में कुछ और होने पर अन्यों से कुछ और ही कहते हैं, इस तरह हम दूसरों को ही नहीं स्वयं को भी धोखा दे रहे होते होते हैं। परमात्मा हर घड़ी हमारे माध्यम से प्रकट होने के लिए व्याकुल है। वह राह ही देख रहा है। मानव का अंतर झूठ की परतों इतना ढक गया है कि उस पावन को वहाँ आश्रय ही नहीं मिलता। हम उसके होने के प्रमाण खोजते हैं और वह हमारी शुद्धता की राह देखता है। कोरोना का वायरस मानवता को शुद्ध बनाने के लिए ही संभवत: आया है। धरती, पानी, हवा सभी को अशुद्ध बना चुका है मानव क्योंकि मन की शुद्धता ही कहीं दब गई है। प्रकृति शुद्ध होगी जब मन पवित्र होगा। मन शुद्ध होगा जब भीतर कपट नहीं रहेगा। प्रकट तथा कपट कितने मिलते-जुलते शब्द हैं पर कितना विपरीत अर्थ रखते हैं। जो प्रकट है अर्थात सम्मुख है वह परमात्मा है पर कपट भरे मन के लिए वह अप्रकट ही रह जाता है। जीवन में जितनी पारदर्शिता व सत्य हो उतना ही देवत्व प्रकट होने में देर नहीं करता।
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
ReplyDeleteहरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी
...परमात्मा सबकुछ देखता है, ये इंसान की भूल रहती है वह जो कुछ भी कर रहा है उसे कोई नहीं देख रहा है
पूर्णत: सही कह रही हैं आप, आभार !
Deleteबहुत अच्छी पोस्ट ।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteस्वागत व आभार !
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