जीवन फूल की तरह नाजुक है तो चट्टान की तरह कठोर भी। पथरीले रस्तों के किनारे कोमल पुष्प खिले होते हैं और कोमल पौधों पर तीक्ष्ण कांटे उग आते हैं। यहाँ विपरीत साथ-साथ रहता है। शिव के परिवार में बैल और सिंह दोनों हैं, सर्प और मोर में सामीप्य है। जो विपरीत में समता बनाए रखना जानता है वह जीवन के मर्म को छू लेता है। हम ज्यादातर एक की तरफ झुक जाते हैं, जो संवेदनशील है वह छोटी-छोटी बातों को दिल से लगा लेता है और इसके विपरीत जो किसी बात की परवाह ही नहीं करता वह अहंकारी हो जाता है । यदि मध्य में रहना हो तो हमें एक साथ संवेदनशील और बेपरवाह होना सीखना होगा, दोनों जिस बिन्दु पर मिलते हैं उस मध्य में ठहरना सीखना होगा। उस मध्य के बिन्दु पर हम दोनों में से कुछ भी नहीं होते, लेकिन जिस क्षण जैसी आवश्यकता हो हम तत्क्षण वैसा व्यवहार करने में सक्षम होते हैं। इसके विपरीत यदि कोई एक सीमा पर है तो उसे दूसरी तरफ जाने में कितना समय लगेगा नहीं कहा जा सकता। इसी तरह कुछ लोग बहुत ज्यादा बोलते रहते हैं, उन्हें अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रह जाता और कुछ को थोड़ा सा बोलना भी नागवार गुजरता है, वे दूसरी अति पर हैं। मध्य में स्थित हुआ जरूरत पड़ने पर घंटों बोल सकता है और जरूरत न होने पर मौन भी रह सकता है। समता का यह गुण ही योग साधना की सिद्धि है।
बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
ReplyDelete"यदि मध्य में रहना हो तो हमें एक साथ संवेदनशील और बेपरवाह होना सीखना होगा"
ReplyDeleteएकदम सही...
बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति..🌹🙏🌹
मध्य में स्थित हुआ जरूरत पड़ने पर घंटों बोल सकता है और जरूरत न होने पर मौन भी रह सकता है। समता का यह गुण ही योग साधना की सिद्धि है।
ReplyDeleteएकदम सटीक.....
स्वागत व आभार !
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन।