दिखावा करना और दूसरों की नक़ल करने की आदत हमें जीवन में आगे बढ़ने से रोकती है। हम दिखावा करते हैं तो अहंकर को बढ़ावा देते हैं। दूसरों की नक़ल करते हैं तो असत्य को प्रश्रय देते हैं। संतुष्ट जीवन सत्य की राह से ही पाया जा सकता है, प्रामाणिकता वह पहली ईंट है जिस पर एक सुखद जीवन की इमारत खड़ी होती है। अहंकार चाहे कितना भी निर्दोष हो हमें अपने सच्चे स्वरूप से दूर ही रखता है। कोई भी व्यक्ति अपने आप में पूर्ण है क्योंकि दिव्य चेतना हर एक के भीतर विद्यमान है। अपनी निजता को पहचान कर हमें उस एकता को पाना है जिसके बाद न ही दिखावा करने की ज़रूरत रह जाती है और न ही किसी की तरह बनने की आकांक्षा।जैसे बगीचे में खिला हर पुष्प अनोखा है वैसे हर मानव अपनी निजी पहचान लेकर दुनिया में आता है, जन्म-जन्मांतर की यात्रा करके वह स्वयं की दिव्यता को पहचान कर अस्तित्त्व के साथ मिलकर कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ता है।
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