Sunday, November 20, 2022

धैर्यशील है कुदरत सारी

जीवन हमें नित नए उपहार दे रहा है। हर घड़ी, हर नया दिन एक अवसर बनकर आता है। हमारे लक्ष्य छोटे हों या बड़े, हर पल हम उनकी तरफ़ बढ़ सकते हैं; यदि अपने आस-पास सजग होकर देखें कि प्रकृति किस तरह हमारी सहायक हो रही है। वह हमें आगे ले जाने के लिए निरंतर प्रयासरत है। हम कोई  कर्म करते हैं और फिर प्रमाद वश या यह सोचकर कि इससे क्या होने वाला है, बीच में ही छोड़ देते हैं। किंतु प्रकृति धैर्य नहीं छोड़ती, वह माँ है जो सदा  अपने बच्चों को पूर्णता की ओर जाते देखना चाहती है। माया कहकर हम चाहे उसे दोष दें पर माया ही हमें जगाती है; फंसने से बचाती है, कभी पुरस्कार द्वारा, कभी फटकार द्वारा हमें सही मार्ग पर रखती है, ताकि एक दिन हम अपने गंतव्य तक पहुँच सकें, स्वयं को परमात्मा से जोड़ सकें। सदकर्मों को करते हुए, मन को शुद्ध रखें और कण-कण में छिपे देवत्व को अपने भीतर पहचान सकें। माँ की कृपा का अनुभव करना भी एक तरह की साधना है जो सजग होकर की जा सकती है। हम अपने वरदानों पर नज़र डालें तो वे बढ़ते जाते हैं, और वे प्रेरित करते हैं। पाँच इंद्रियों तथा मन के रूप में देवता हमारे सहायक बनें, वे हमें सन्मार्ग पर रखें, ऐसी ही प्रार्थना हमें करनी है। 


4 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-11-22} को "कोई अब न रहे उदास"(चर्चा अंक-4618) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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    1. बहुत बहुत आभार कामिनी जी!

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  2. बहुत ही बढ़िया सृजन यदि सभी इन भावों को हृदयंगम कर लें तो एक सुंदर और स्वस्थ समाज बन सकता है।

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    1. स्वागत व आभार अभिलाषा जी !

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