अतीत हमारे वर्तमान में सेंध न लगाए, इसका सदा ध्यान रखना है। परमात्मा जब भी जिसको मिला है, सदा वर्तमान में मिला है। जब हमारा मन अतीत या भविष्य की कल्पना में खोया होता है, वह उस वर्तमान की क़ीमत पर करता है, जो हमें लक्ष्य तक पहुँचा सकता था। साधक का एकमात्र लक्ष्य है अपने भीतर छिपे दिव्य तत्व का आत्मा के रूप में अनुभव करना तथा कण-कण में छिपे देवत्व को पहचान कर जगत के साथ एकत्व का अनुभव करना। हमारा मन इस एकत्व को अनुभव नहीं कर सकता क्योंकि वह सीमित है। मन हमारे विचारों, भावनाओं, आकांक्षाओं का एक पुंज है, बुद्धि अवश्य तर्क के आधार पर जगत की अनंतता को जान सकती है। किंतु बौद्धिक स्तर पर जानने से उस दिव्यता की कल्पना ही की जा सकती है, उसे अस्तित्त्व गत जानना होता है। जिसका अर्थ है, हमारी हर श्वास में वह प्रकट हो, हमारे हर कृत्य, हर विचार में उसकी झलक हो, जो सदा आनन्दमय है, पूर्ण है, प्रेम, शांति, शक्ति और ज्ञान का स्रोत है। जीवन में जब भी इन तत्वों की कमी हो मानना होगा कि हम आत्मा से दूर हैं और अपने लक्ष्य से भी दूर हो रहे हैं।
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