Thursday, November 17, 2022

मन के जो भी पार हुआ है

हमारे विचार शुभ हों, उनमें दिव्यता की झलक हो तो ईश्वरीय आनंद हमारे चारों तरफ़ अनुभव होने लगता है। यह जीवन एक अवसर के रूप में हमें मिला है, इसे सँवारना हमारे अपने हाथों में है। ईश्वर की  हज़ार-हज़ार शक्तियाँ हमारी सहायता के लिए तत्पर हैं, उनकी कृपा अनवरत बरस रही है। हमें उसकी तरफ़ स्वयं को उन्मुख करना है। अभी हम मनमुख हैं, अपने मन के ग़ुलाम, मन की छोटी-छोटी इच्छाओं, कामनाओं और संवेगों के इशारे पर चलते हैं। मन आदतों का एक पुंज है इसलिए हम बार-बार उन्हीं कृत्यों को करते हैं। जीवन एक दोहराव बन जाता है। हम कहीं पहुँचते हुए नहीं पाए जाते; जब तक मन के इस दुश्चक्र से बाहर निकल कर यह निर्णय नहीं लेते हैं कि जीवन की वास्तविकता आख़िर है क्या ? क्या सुख-दुःख के झूले में झुलाने के लिये ही धरती पर इतना आयोजन हुआ है। जगत में जो इतना अत्याचार, अनाचार चल रहा है, वह स्वार्थी मनों का ही तो परिणाम है। हर कोई अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगा है। पर इससे दुनिया सुंदर तो नहीं बन रही। हम इस दायरे से बाहर नकलते हैं तो स्वयं को एक विस्तृत आकाश में पाते हैं, जो शांति का घर है। 


No comments:

Post a Comment