परमात्मा सर्वशक्तिमान है, वह सर्जक है, नर्तक है, वह दृष्टा है, स्वप्नदर्शी है। वह अनंत है और अनंत हैं उसके उसके आयाम। उसके हर गुण, हर क्षमता को एक देवी या देवता का रूप दे दिया गया है। इसलिए देवी-देवता अनेक हैं। मानव का हृदय जब स्वार्थ से ऊपर उठ जाता है, उसमें उन देवताओं का वास हो जाता है। महापुरुषों में दैवीय गुण होते हैं और असुरों में आसुरी शक्तियों का वास बन जाता है। हमें यदि प्रेम, शांति, आनंद जैसे गुणों को अपने भीतर धारण करना है तो इनके देवताओं का वरण करना होगा। उनका स्मरण मात्र करना होगा; तथा अपनी सच्ची आकांक्षा के अनुरूप हम पाएँगे कि वे हमारे आस-पास ही विचरते हैं। पुराणों में लिखी देवों की कहानियाँ प्रकृति के अटल, सत्य नियमों का निरूपण हैं। अतीत काल से मानव व देव मिलजुल कर इस धरती पर आते रहे हैं। दोनों ही परमात्मा की कृति हैं। जब मानव ने विज्ञान को ही सब कुछ मान लिया , वह भूल ही गया कि विज्ञान के नियमों के पीछे भी वही शक्ति है। अब समय आ गया है कि विज्ञान और अध्यात्म एक ही मार्ग पर चलें और यह धरती अपने वैभव को प्राप्त हो।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (22-12-2022) को "सबके अपने तर्क" (चर्चा अंक-4629) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !
Deleteविज्ञान और अध्यात्म एक ही मार्ग पर चलें और यह धरती अपने वैभव को प्राप्त हो...बिलकुल सही
ReplyDeleteस्वागत व आभार कविता जी!
Deleteगहन दर्शन आध्यात्म की सर्वोच्च सत्ता कर सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteस्वागत व आभार कुसुम जी!
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