अप्रैल २००५
परमात्मा
की कृपा भरा हाथ सदा हमारे सिर पर है, वह जीवन के हर मोड़ पर हमें मार्ग दिखाने के लिए हमारे
साथ हैं. सत्संग से हमें इसका ज्ञान होने लगता है. सत्य का आश्रय मिल जाये तो जीवन
का पथ कितना सहज तथा सुरक्षित हो जाता है. हम अपने दीप स्वयं बन जाते हैं. हमारे
लिए इस जगत का महत्व तभी तक रहता है जब तक हमारी पहचान इस देह के माध्यम से बनी
है, स्थूल देह के साथ हमारा सम्बन्ध टूटते ही जगत का इस अर्थ में लोप हो जाता है कि
वह हमें प्रभावित नहीं करता. यह देह हमसे अलग है, हम इसे जानने वाले हैं, जहाँ
जानना तथा होना दो हों वहाँ द्वैत है, जब जानना तथा होना एक हो जाता है, वहाँ दो
नहीं होते एक ही सत्ता होती है, वही वास्तव में हम हैं. शरीर, मन, बुद्धि सब अपने-अपने
धर्म के अनुसार कर्म करते हैं, पर आत्मा जिसकी सत्ता से ये सभी हैं. अपनी गरिमा
में रहता है. वह है, वह जानता है कि वह है, वह जानता है, वह आनन्द पूर्ण है. यह
जानना ही वास्तव में जानना है.
दिव्य सत्संग..
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