अप्रैल २००५
‘समाधि
सुखः लोकानन्दः’ समाधि से प्राप्त सुख लोक के सुख का कारण भी बनता है, तथा लोक में
हमें जो भी आनन्द मिलता है वह समाधि से ही प्राप्त है. उगते हुए सूर्य को देखकर जो
हम चकित से रह जाते हैं, अनजाने में समाधि ही लग जाती है, मन लुप्त हो जाता है, हम
उस चेतना से जुड़ जाते हैं. जब हम ध्यान में बैठते हैं तो शांति की किरणें फूल की
सुगंध की तरह हमारे चारों ओर फूटती रहती हैं. दुनिया के सारे सुख इस ध्यान सुख में
समाये हैं, जैसे हाथी के पैर में सारे पैर समा जाते हैं. जिसे एक बार इस समाधि का
अनुभव होता है, वह द्वन्द्वों से मुक्त हो
जाता है. प्रेम, आनन्द, शांति उसके नित्य सहचर बन जाते हैं. गांठे खुलने लगती है और
बीजरूप में पड़ा भक्ति का वृक्ष खिल उठता है, यह एक चमत्कार ही होता है, इससे बढ़कर
कोई चमत्कार नहीं !
बहुत ही बढिया
ReplyDeleteअद्भूभूत
ReplyDeletesundar updesh
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 09/11/2013 को एक गृहिणी जब कलम उठाती है ...( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 042 )
- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसार्थक सन्देश देती रचना। बहुत सार गर्भित अनुकरणीय दर्शन तत्व लिए है :समाधि है। अहम का विसर्जन है समाधि।
ReplyDeleteस्दाजी, राजेन्द्र जी, रमाकांत जी, उपासना जी, कुंवर जी, वीरू भाई तथा वन्दना गुप्ता जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDelete