मार्च २००५
मन कितने-कितने विचारों
में खो जाता है, काम करते हुए अथवा ध्यान करते हुए भी हमारा मन पुनः पुनः चहुँ ओर
विचरने लगता है. कभी वर्तमान में रहना ही नहीं चाहता, वर्तमान में ही हमारे सारे
प्रश्नों का हल है, सारी तलाश वर्तमान में ही समाप्त होने वाली है, हम जिसे चाहते
हैं वह भी वर्तमान में मिले तभी तुष्टि होगी, भूत तो सताते हैं और भविष्य भरमाता
है. वर्तमान ही सत्य है, हमें यह बात जितनी जल्दी समझ आ जाये उतना ही अच्छा है. मन
जानता है कि वर्तमान में वह रहता ही नहीं, उसका कोई महत्व नहीं रह जाता, अपने अहंकार
को बढ़ाने के लिए कोई कथा-कहानी जो नहीं रह जाती उसके पास. मन ही वह पर्दा है जो
हमारे और परमात्मा के बीच में है, इसके गिरते ही सत्य स्वयं स्पष्ट हो जाता है. मन
पुष्ट होता है इन्द्रियों के कारण, यदि इन्द्रियां सत्कार्यों में लगी रहें तो मन
भी सद्विचारों से युक्त होगा, सात्विक मन ध्यान में बाधा नहीं डालेगा, पर भीतर
गहरे जाने पर उन्हें भी विदा होना होगा. सद्गुरु की कृपा से यह सम्भव है.
यही परम लक्ष्य है जीवन का क्योंकि सतो गुण भी अहंकार लाता है। गुणातीत होना है।
ReplyDeleteस्वागत व आभार ! सही कहा है आपने
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