Friday, November 22, 2013

श्रद्धावान लभते ज्ञानम्

अप्रैल २००५ 
आनन्द की राशि, परमात्मा हमारे भीतर है तो हमें उदास होने की क्या जरूरत है, यह तो ऐसा ही हुआ कि फूलों के ढेर हमारी गोद में हैं और खुशबू हमसे दूर रहे. भीतर जब जिज्ञासा और श्रद्धा का जन्म होता है तो पहले प्रेम फिर ज्ञान का उदय होता है और आनन्द का स्रोत भीतर फूट पड़ता है. भय का नाश हो जाता है, मन झुक जाता है, भीतर खाली हो जाता है, जैसे जन्मों का बोझ उतर गया हो. भक्त को पंख मिल जाते हैं, वह कौतुक से भर जाता है, सरल, सहज हो जाता है. उसके भीतर का आनन्द बाहर भी प्रवाहित होने लगता है. वह अन्यों के मन के भाव पढ़ने लगता है. जगत के साथ उसके सम्बन्ध पारदर्शी हो जाते हैं.  

2 comments:

  1. सहज सुंदर भाव .....

    ReplyDelete
  2. "अहं ब्रह्मास्मि" = मैं ब्रह्म हूँ । तत्त्वमसि= तुम भी वही हो जो मैं हूँ ।

    ReplyDelete