Tuesday, October 21, 2014

निज घर में ही वह रहता है

मार्च २००७ 
सत्य के मार्ग पर चलने से पहले हमें सत्य के प्रति प्रेम जगाना है, उसकी प्यास जगानी है ! उसकी चाह जिसके भीतर जग जाती है वह तो इस अनोखी यात्रा पर निकल ही पड़ता है, और एक बार जब हम उस अज्ञात पर पूर्ण विश्वास करके उसे सबकुछ सौंप कर आगे बढ़ते हैं तो वह हमारा हाथ ऐसे थाम लेता है जैसे वह हमारी ही प्रतीक्षा कर रहा था. वह हमें अपने भीतर की ऊर्जा को जगाने का बल देता है राह बताता है जब अपने पथ से दूर होने लगे तो पुनः लौटा लाता है. वह हजार आँखों वाला, हजार बाहुओं वाला और सब कुछ जानने वाला है. हम उसकी तरफ चलते-चलते अपने घर लौट आते हैं तब ही पूर्ण विश्रांति का अनुभव करते हैं. 

4 comments:

  1. सच कह है .. धर्म के प्रति प्रेम होने से ही उसे रहन कर पाता है इंसान ...

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बुधवार- 22/10/2014 को
    हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 39
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

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  3. मानव का मन उसका घर है ।
    सुन्दर रचना ।

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  4. दिगम्बर जी व शकुंतला जी, स्वागत व आभार !

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