अप्रैल २००७
संत कहते हैं यह जग कितना
सुंदर है ! हमें यदि यह सुंदर नहीं लगता तो हमारी नजर में ही दोष है. हम अन्यों
में दोष देखना जब तक बंद नहीं करते, जगत हमें असुन्दर ही लगेगा. ज्ञानी सभी को
शुद्ध आत्मा ही देखते हैं, तो कमियां अपने आप छिटक जाती हैं. हम जब कमियां देखते
हैं तो हमारे मन में भी उस कमी का भाव दृढ हो जाता है. हम न चाहते हुए भी उनके साथ
तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं. यह जगत जैसा है, वैसा है हमें चाहिए कि हो सके तो
किसी की सहायता कर दें, न हो सके तो अपने हृदय को खाली रखें, उनमें संसार की कमियां
तो न ही भरें. इस नाशवान स्वप्नवत् संसार के पीछे छिपे तत्व को पहचानें और उसी पर
अपनी नजर रखें.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बुधवार- 29/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 40 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
बहुत बहुत आभार...
Deleteभगवान कृष्ण ने दुर्योधन को कहा कोई अच्छा आदमी ढूंढ के लाओ उससे कुछ काम करवा लेंगे। दुर्योधन को एक भी अच्छा आदमी नहीं मिला। युधिष्ठिर को भगवान ने एक बुरा आदमी ढूंढ़के लाने को कहा। शाम को युधिष्ठिर खाली हाथ ही लौटे कहा एक भी बुरा आदमी नहीं मिला।
ReplyDeleteबुरा जो खोजन मैं चला बुरा न मिलिया कोय। जैस दृष्टि वैसी सृष्टि।
सही कहा है आपने...आभार !
DeleteThis is Fact or Fake ?
Delete*बुरा जो खोजन मैं चला बुरा न मिलिया कोय। जैस दृष्टि वैसी सृष्टि।*
शायद सच हि होगा क्यों के अब इतने बडे महापुरुषो और पुरुषोत्तम की बाते है, तो झूठ भी कैसे माने हम अपने हाल निजी अनुभवो को लेकरके ! धन्यवाद।
*जैस दृष्टि वैसी सृष्टि।*
Delete*के फिर जैसा द्रष्टा वैसा सृष्टा !* 🤔
यही तत्व-ज्ञान है - पकड़ में आते-आते छूट जाता है..
ReplyDeleteएक दिन तो पकड़ में आ ही जायेगा....आभार !
Deleteबिल्कुल सच्ची बात
ReplyDeleteSunder sandesh aapke aalekh me....prantu aisa munasif kahan hai? :(
ReplyDelete