अप्रैल २००७
सद्गुरु
में ज्ञान की सुगंध होती है जो हमें अपनी ओर खींचती है. उसमें प्रेम की आध्यात्मिक
सुरभि होती है जो हमें आकर्षित करती है. एक पवित्र गंध ईश्वर की याद का साधन होती
है. जो रब की याद दिलाये उसका विश्वास कराए, जिसे देखकर सिर अपने आप झुक जाये. वही
तो सद्गुरु होता है. सद्गुरु हमें अनंत की ओर ले जाता है, वह सारी सीमाएं तोड़कर
असीम को जानने का, उसे पाने का निमन्त्रण देता है ! तन पवित्र हो, स्वच्छ हो,
स्वस्थ हो, मन निर्द्वन्द्व हो, निर्भार
हो तभी आत्मा अपने पूर्ण रूप में भीतर प्रकट होती है. आत्मा का स्वभाव है आनंद,
प्रसन्नता और प्रेम ! वह शांति की सुगंध समोए है जो रह रहकर रिसती है, पर जब न तो
तन के स्वास्थ्य का ध्यान हो न मन सजदे में झुका हो तो आत्मा भीतर कैद ही रह जाती
है और हम जीवन भर दुर्गन्ध का शिकार होते रहते हैं. ईर्ष्या से जलता हुआ, क्रोध और
अहंकार से ग्रसित मन सिवाय दुर्गन्ध के क्या दे सकता है, भीतर यदि प्रेम होगा तो
वह प्रकटे बिना रह ही सकता.. कितना सरल है और कितना सहज है उस प्रेम को पाना जो
हमारा निज का स्वभाव है.
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteस्वागत व आभार ! वीरू भाई
DeleteVery nice
ReplyDeletehttp://hindikavitamanch.blogspot.in/
स्वागत व आभार ऋषभ जी
ReplyDeleteकितना आत्मिक-अध्यात्मिक सम्देश कि मन तृप्त हो गया.
ReplyDelete