हम हनुमान जी से बल, बुद्धि
व विद्या का वर मांगते हैं किन्तु यदि बुद्धि में धैर्य न हो, बल के साथ विवेक न
हो और विद्या में नम्रता न हो तो यही वरदान शाप भी बन सकते हैं. मन तो शिशु के
समान है और बुद्धि उसकी बड़ी बहन, पर दोनों का आधार तो आत्मा है. आत्मा यदि स्वस्थ
हो, सबल हो, सजग हो तो अधैर्य, अविवेक और उद्दंडता के साथ तादात्म्य नहीं करेगी.
वह अपनी गरिमा में रहेगी.
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