Wednesday, March 18, 2020

जिस पल चेतेगा मानव


अखबारों में जिस खबर को हेडलाइन बनाया जा रहा है टीवी पर वही ब्रेकिंग न्यूज है, सोशल मीडिया पर जिसे प्रमुखता दी जा रही है फोन पर चर्चा का भी वही विषय है. अपने अब तक के जीवन में ऐसा न कभी देखा न सुना, जब एक न दिखने वाले दुश्मन से डर कर लोग घरों में बन्द हो गए हों. जो सक्षम हैं वे कुछ हफ्ते घर में बन्द रहकर भी आराम से समय बिता सकते हैं पर जिनका जीवन दैनिक रोजगार पर आधारित हो, वे काम न मिलने से कितने प्रभावित हो रहे होंगे. क्या आज यह सोचने की जरूरत नहीं है कि ऐसा क्यों हुआ, क्या यह मानव की नियति है अथवा उसके किसी कर्म का फल. महामारियां पहले भी फैलती रही हैं जब इलाज की इतनी सुविधाएँ नहीं थीं पर विज्ञान के इस युग में मानव का इस तरह विवश हो जाना कई गहरे प्रश्न उठाता है. आज नहीं कल कोरोना का इलाज ढूंढ लिया जायेगा और जल्दी ही यह भय का वातावरण खत्म हो जायेगा, किन्तु उन प्रश्नों के हल तलाशना फिर भी जरूरी है. मानव ने जंगलों को काटकर बस्तियां बनायीं,शाक-सब्जी, फल, दूध होते हुए भी जीव हत्या करके अपनी क्षुधा मिटाई. फैशन के लिए और अपनी शक्ति के प्रदर्शन के लिए भी निरीह पशुओं की हत्याएँ  कीं. धरती का अनियमित दोहन किया, जल व हवा को दूषित किया, इतना करके भी स्वयं को प्रकृति का स्वामी समझकर कभी इन बातों के लिए स्वयं को दोषी नहीं माना, बल्कि विकास के नाम पर इन्हें बढ़ावा ही दिया. मनोरंजन के लिए लाखों लुटाने वाले जब यह भूल जाते हों कि उनके ही पड़ोस में कोई भूखा सोने को विवश है, उच्च शिक्षा के लिए करोड़ों देकर दाखिला लेने वाले जब यह न देखते हों कि किसी असमर्थ पर कुशाग्र  विद्यार्थी की एक सीट वे ले रहे हैं. जब इतना अन्याय होता हो तो प्रकृति भी दूषित हो जाये इसमें क्या अस्वाभाविक है. काम, क्रोध, लोभ, हिंसा और अत्याचार के परमाणु जब वातावरण में बढ़ जाते हैं तो प्रकृति में हलचल होती है. आज लोग घरों में बैठे हैं तो कुछ चिंतन भी करते होंगे, सजगतापूर्वक कुछ समय स्वयं के साथ बिताकर हम अपने जीवन की नई दिशा के बारे में निर्णय ले सकते हैं. हमारा जीवन इस सुंदर ग्रह के लिए एक वरदान बने, हम इसके पोषक हों, शोषक नहीं. 

2 comments:

  1. सार्थक सन्देश से ओतप्रोत आलेख।

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  2. बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !

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