कोई भी आपदा या समस्या तभी हमला करती है जब तन-मन दुर्बल होता है. मानसिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ और सबल रहना आज हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता है. मृत्यु का भय हो या रोग का अथवा किसी भी कारण से मन में भय होगा तो शरीर रोग का मुकाबला नहीं कर पायेगा. एक न एक दिन तो सबको मरना ही है, जब तक जीवन है तब तक तो इसके हर पल को सही मायनों में हमें जीना है. सही मायनों में जीने का अर्थ है स्वयं के माध्यम से उस परम् शक्ति को प्रकट होने का अवसर देना. परमात्मा को सच्चिदानंद कहते हैं, अर्थ वह सत, चिद व आनंद स्वरूप है. सत का अर्थ है वह सदा है, हम सभी जानते हैं आत्मा शाश्वत है, सदा है, वह चेतन है और सदा आनंद स्वरूप है. हमें भी स्वयं की नश्वरता का अनुभव करते हुए अंतर के आनंद को प्रकट होने से बाधित नहीं करना है. यह बाधित होता है, सुबह से शाम तक नकारात्मक समाचार सुनने से, व्यर्थ के भय पालने से और व्यर्थ की बातचीत करने से, क्योंकि ज्यादातर लोग स्वयं भयग्रस्त होकर अन्यों को भी डराने का काम करते हैं. इसके विपरीत यदि ब्रह्म मुहूर्त में उठकर कुछ देर ध्यान का अभ्यास किया जाये तो सहज ही भीतर की प्रसन्नता बाहर प्रकट होगी, और यह प्रकृति का नियम है जो हम बाहर भेजते हैं वही हमें लौट कर मिलता है. इस तरह हम अपने आसपास के वातावरण को भी प्रमुदित रख सकते हैं, साफ-सफाई का विशेष ध्यान भी रखना है और भोजन भी सुपाच्य हो तो किसी भी संक्रमण से हम स्वयं को बचा सकते हैं.
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