Thursday, December 20, 2012

चाह गयी चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह


ईश्वर के प्रति अनन्य विश्वास कितना सहज है एक भक्त के लिए पर कितना कठिन है एक अभक्त के लिए, जो हवा, धूप और जल की भांति सहज उपलब्ध है, जो है तो हम हैं, बल्कि वही है जो स्वयं को विभिन्न रूपों में प्रकट कर रहा है, वह लीला प्रिय है. वह स्वयं को भक्त के वश में होने देता है. सूक्ष्म से भी सूक्ष्म, विशाल से भी विशाल वह अप्रमेय है. उसकी कृपा होते ही मन अपनी सीमाएं तोड़ देता है, क्षुद्र स्वार्थ की सीमाएं, परमार्थ की बात सोचने लगता है. धीरे-धीरे मन अमनी भाव में आ जाता है. तब कोई चाह नहीं रहती, प्रकृति भक्त के साथ हो जाती है, उसके द्वारा अर्थपूर्ण काम होने लगते हैं, भीतर की छिपी शक्तियाँ जागृत होने लगती हैं. जगत के अधिपति का प्रिय पात्र बन जाने पर जगत का जोर चल भी कैसे सकता है.

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