दिसंबर २००३
मानव एक पुल है, जिसके एक ओर
पशुता है और दूसरी ओर देवत्व, चुनाव उसके हाथ में है, क्रोध, हिंसा उसे पशु के
समान बनाते हैं, प्रेम, उदारता देवों के समान. ऊर्जा भीतर एक ही है, दिशा भिन्न
है, हर पल उसे दोनों में से चुनाव करने का अवसर मिलता है, यही तनाव उसे व्यथित
किये रहता है, पशुता में उसका आकर्षण है क्योंकि वहाँ कोई जिम्मेदारी नहीं, देवत्व
उसे चाहिए पर कीमत चुकाए बगैर, इसी कशमकश में मानव कहीं भी नहीं पहुंच पाता. नशा करके
वह इस चुनाव से मुख मोड़ लेता है, यह नशा मादक द्रव्य का भी हो सकता है, धन, पद या
यश का भी. वह अपनी एक मनमोहक छवि बना लेता है, और स्वयं ही धोखे में आ जाता है. इस
पुल से निजात पाने का एक उपाय है, एक नई दिशा की तलाश, केवल मानव होने की
आकांक्षा, जहां है वहीं रहकर स्वयं में टिक जाने का प्रयास, अपने भीतर जाने का
प्रयत्न, तब चुनाव से परे होकर जीना होगा, जब जो मिले उसे सहज ही स्वीकारना, अमृत
हो या विष दोनों को समता की भावना से ग्रहण करना. न कुछ पाने की चाह हो न कुछ
त्यागने की, ऐसा मन ही परमात्मा की निकटता को अनुभव कर सकता है.
मानव एक पुल है, जिसके एक ओर पशुता है और दूसरी ओर देवत्व, चुनाव उसके हाथ में है, क्रोध, हिंसा उसे पशु के समान बनाते हैं, प्रेम, उदारता देवों के समान. ऊर्जा भीतर एक ही है, दिशा भिन्न है, हर पल उसे दोनों में से चुनाव करने का अवसर मिलता है,
ReplyDeleteएक सार्थक सुविचार
बिलकुल सटीक ।
ReplyDeleteसारगर्भित ....बहुत उपयोगी ...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सार्थक विचार,,,
ReplyDeleterecent post : नववर्ष की बधाई
रमाकांत जी, इमरान, अनुपमा जी व धीरेन्द्र जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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