Friday, August 21, 2015

जगा रहे मन घड़ी-घड़ी


जीवन को गहराई से महसूस करना हो तो वर्तमान के क्षण में ही किया जा सकता है, पर हम न  जाने कितना समय अतीत की स्मृतियों और भविष्य की कल्पनाओं में खो देते हैं. रात्रि को स्वप्न देखना स्वाभाविक है पर जागते हुए भी भीतर जो विचार की धारा चलती रहती है वह स्वप्न ही है, संत जन तभी कहते हैं हम जागते हुए भी सोये हैं. जिस क्षण हम भोजन कर रहे हैं, मन कहीं और है, स्वप्न चल रहा है, ऊर्जा व्यर्थ ही बही जा रही है, जिस समय किसी से वार्तालाप कर रहे हैं, भीतर एक अन्य बातचीत चल रही है, अर्थात हम जहाँ होते हैं अक्सर वहाँ नहीं होते, इसी कारण मन थक जाता है. संतजन प्रफ्फुलित रह पाते हैं क्योंकि उन्होंने इस राज को जान लिया है, वह निरंतर ऊर्जा के प्रवाह को बनाये रखते हैं. 

2 comments:

  1. वर्तमान ही तो अपना है बाकी सब तो एक सपना है ।
    सुन्दर - प्रस्तुति

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  2. स्वागत व आभार शकुंतला जी..

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