Tuesday, May 25, 2021

बुद्धम शरणम गच्छामि

 बुद्ध कहते हैं, जगत परिवर्तनशील है, यहाँ सब कुछ नश्वर है, वस्तुओं के पीछे भागना व्यर्थ है और संबंधों के पीछे भी, भीतर की शांति और आनंद को यदि स्थिर रखना है तो अपने भीतर ही उसका अथाह स्रोत खोजना होगा। शांति और आनंद से मन को भरकर ही करुणा के पुष्प खिलाए जा सकते हैं ! हमारे पास यदि स्वयं ही प्रेम नहीं है तो हम किसी को दे कैसे सकते हैं ! बुद्ध ध्यान पर बहुत जोर देते हैं और शील के पालन पर भी। सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अलोभ और अक्रोध पर साथ ही प्रज्ञा पर भी। वे अनुभव करके स्वयं जानने को कहते हैं न कि किसी की बात पर भरोसा करके ! पहले मन को सभी इच्छाओं, कामनाओं, लालसाओं से ऊपर ले जाकर खाली करना होगा। यशेषणा, वित्तेषणा, पुत्रेष्णा और जीवेषणा से ऊपर उठकर भीतर के आनंद को पहले स्वयं अनुभव करना होगा फिर उसे बाहर वितरित करना होगा। वह कहते हैं, जगत में अपार दुख है, दुख का कारण अज्ञान है, अज्ञान को दूर करने का उपाय ध्यान है, ध्यान से ही दुख और शोक के पार जाया जा सकता है। अहंकार को मिटाकर ही कोई इस पथ का यात्री बनता है । धरती, पवन, अनल और जल की तरह धैर्यवान, सहनशील, परोपकारी और पावन बनकर ही बुद्ध ने अपने जीवनकाल में हजारों लोगों के जीवन को सुख की राह पर ला दिया था।


8 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-05-2021को चर्चा – 4,078 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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    1. बहुत बहुत आभार !

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  2. बुद्ध जी महानता का अनुपम वर्णन ।

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  3. प्रेरक सामयिक प्रस्तुति

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  4. महात्मा बुद्ध के ज्ञान का सार समझाती सुंदर आलेख आदरणीय अनीता जी ,सादर नमन आपको

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  5. स्वागत व आभार कविताजी व कामिनी जी !

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  6. सुंदर सारगर्भित तथ्य देती पोस्ट।

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