Sunday, May 9, 2021

अमर आत्मा नश्वर है तन

 अर्जुन जिस विषाद योग में स्थित था आज उसी में हममें से हरेक स्थित है. युद्ध की स्थिति जितनी भयावह हो सकती है, उसी तरह की एक स्थिति, एक अदृश्य विषाणु से युद्ध की स्थिति ही तो आज विश्व के सम्मुख खड़ी है. अर्जुन को अपने गुरु, पितामह, चाचा, मामा, श्वसुर, भाइयों  तथा अन्य संबंधियों की मृत्यु का भय था. वह कहता है जब ये सब ही नहीं रहेंगे तब मैं युद्ध जीतकर भी क्या करूंगा. युद्ध न करने की बात कहकर जब वह धनुष रख देता है तब कृष्ण उसे आत्मा की अमरता का संदेश देते हैं. आत्मज्ञान पाना हो तो जीवन में ऐसा ही तीव्र संवेग चाहिए. जब कोई भी संवेदना चरम पर पहुंच जाती है तब मन ठहर जाता है और ग्रहणशील बनता है. आज हमारा मन ऐसी ही पीड़ा का अनुभव कर रहा है. कितने ही परिचित, अपरिचित जब सदा के लिए मौन हो रहे हैं तब भीतर यह प्रश्न उठता है कि अब क्या होने वाला है. गीता में कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, ये सब राजा इस जन्म से पहले भी थे, और बाद में भी रहेंगे. जीवन पहले अप्रकट होता है मध्य में प्रकट होता है फिर अप्रकट हो जाता है. ज्ञानी जीवित और मृत दोनों के लिए शोक नहीं करते. युद्ध में जहाँ लाखों लोग अपने प्राण हथेली पर लेकर आये थे, ऐसा उपदेश देकर कृष्ण ने अर्जुन को आत्मा की शाश्वतता का बोध कराया. आज हरेक को उस ज्ञान को याद करना है. मानवता के इतिहास में ऐसी भीषण परिस्थितियां यदा-कदा ही आती हैं जो सामान्य जन को जीवन की सच्चाई से रूबरू कराती हैं. 


10 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11 -5-21) को "कल हो जाता आज पुराना" '(चर्चा अंक-4062) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  3. बहुत सुंदर अनीता जी, इस कोरोना काल में गीता का उपदेश ''अमृत'' सरीखा है, सच ही तो है क‍ि ज्ञानी जीवित और मृत दोनों के लिए शोक नहीं करते, आत्मा की शाश्वतता को यद‍ि हम आज भी जान लें तो इतना गहन व‍िषाद रह ही नहीं जाएगा।

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    1. सही कह रही हैं आप, स्वागत व आभार अलकनंदा जी !

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  4. बहुत सुंदर

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