अध्यात्म का सबसे बड़ा चमत्कार सबसे बड़ी सिद्धि तो यही है कि हम अपने बिखरे हुए मन को समझ लें, चित्त को देख लें. मानव होने का यही तो लक्षण है कि साधना के द्वारा मन को इतना केंद्रित कर लें कि मन के परे जो शुद्ध, बुद्ध आत्मा है वह उसमें प्रतिबिम्बित हो उठे. ज्ञान के द्वारा उस आत्मा के बारे में जानना है, फिर योग और ध्यान के द्वारा उसका अपने भीतर अनुभव करना है तथा भक्ति के द्वारा उसका आनंद सबमें बांटना है. योग अतियों का निवारण है, जो मन व तन को जो प्रसन्न रखता है तथा भीतर ऐसा प्रेम प्रकटाता है, जिससे जीवन सन्तुलित हो. जब तक अपने लिए कुछ पाने की वासना बनी है मन स्थिर व ख़ाली नहीं हो सकता, जब सारी इच्छाएं पहले ही पूर्ण हो चुकी हों तो कोई चाहे भी क्या ? व्यवहार जगत में दुनियादारी के लिए लेन-देन चलता रहे पर भीतर हर पल यह जाग्रति रहे कि वे आत्मा हैं, जो अपने आप में पूर्ण है ! ज्ञान के वचनों को समझ लेने मात्र से ही कोई बुद्ध नहीं हो जाता, जब तक स्वयं का अनुभव न हो तब तक उधर का ज्ञान व्यर्थ है. शास्त्र जब कुछ कहते हैं तो वे केवल तथ्य की सूचना भर देते हैं, उनकी उद्घोषणा में कोई भावावेश नहीं है. वे हमें हमारी समझ के अनुसार चलने का आग्रह करते हैं।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१२-११-२०२१) को
'झुकती पृथ्वी'(चर्चा अंक-४२४६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अध्यात्म और ध्यान एकाग्रता से ही सम्भव है और एकाग्रता भी ध्यान सी ही प्राप्त होती है स्वयं को समझने और ध्यान के महत्व को समझाती लाजवाब कृति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अध्यात्मिक रचना
ReplyDeleteGreat post. High quality motivation.
ReplyDeleteसुधा जी, भारती जी व अनिल जी आप सभी का स्वागत व आभार!
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