अक्तूबर २००५
यदि हम सहज रहना चाहते हैं
तो हमें वस्तुओं को वैसे ही देखना सीखना होगा, जैसी वे हैं. हम अपनी धारणाओं को उन
पर आरोपित कर देते हैं और व्यर्थ ही भ्रमित होते रहते हैं. आत्मा अविनाशी है सदा
है पर हम ने उसे मृत्यु के साथ जोड़ दिया है शरीर किसी भी क्षण जा सकता है पर हम
ऐसे जिए चले जाते हैं जैसे सदियों तक जीना है. आत्मा की कीमत पर हम देह को सजाते
हैं पर बिन प्रकाश के दीपक जैसा सूना होता है आत्मा जगे बिना हम भी खाली ही रह
जाते हैं. सद्गुरु के बताये मार्ग से जब शरणागति हमारा स्वभाव बन जाती है तब जीवन
में एक स्थिरता आती है, निश्चिंतता आती है, सहजता आती है, समता आती है और तब भीतर
संगीत भर जाता है. जगत की असत्यता का अनुभव होने लगता है और परमात्मा कण-कण में
प्रकट होने लगता है.
बहुत सुंदर विचार ...!
ReplyDeleteRECENT POST - प्यार में दर्द है.
भीतर कोई राग छिपा है ...
ReplyDeleteप्रभु का ही अनुराग छिपा है ,
बहुत सुंदर बात ....आभार अनीता जी .
अनुपमा जी ! मुझे आपकी टिप्पणी बहुत अच्छी लगी । सचमुच उसका अनुराग छिपा है । सुन्दर प्रस्तुति ।
Deleteयथार्थ का निरूपण करती विचार सरणी :देह मरती है ,आत्मा देहांतरण करती है देह अंत (देहांत )होता है।
ReplyDeleteअनुपमा जी, धीरेन्द्र जी, शकुंतला जी, व वीरू भाई आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteयदि हम सहज रहना चाहते हैं तो हमें वस्तुओं को वैसे ही देखना सीखना होगा, जैसी वे हैं. हम अपनी धारणाओं को उन पर आरोपित कर देते हैं और व्यर्थ ही भ्रमित होते रहते हैं.
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