अक्तूबर २००५
जैसे
अंगों का प्रत्यारोपण होता है वैसे ही आदतों का प्रत्यारोपण हमें करना है. भगवद्
गीता में कहा गया है, भावना के बिना शांति नहीं और शांति हीन को सुख नहीं. हमें
सामंजस्य, क्षमा, समता की भावना करनी है, जिससे सम्बन्ध सुमधुर हों. यह भावना से
ही सम्भव है, भावना जितनी दृढ होगी, बात उतनी गहरी भीतर तक जाएगी. हमें ऊपर-ऊपर का
बदलाव नहीं चाहिए. प्रेम भी स्थायी हो, आनन्द भी स्थायी हो, इसके लिए आवश्यक है
संस्कार ही बदल दें. नियमित अभ्यास तथा भाव शुद्धि की इसमें अतीव आवश्यकता है.
....भावना ही जीवन को सौन्दर्य देती है ....!!बहुत सुंदर बात ...!!
ReplyDeleteआभार अनीता जी ...!!
बहुत सार्थक चिंतन...
ReplyDeleteभाव प्रत्यारोप वाह !सुन्दर !
ReplyDeleteकर्म पर है अधिकार तुम्हारा कदापि नहीं है फल पर वश ।
ReplyDeleteअतः पार्थ तू कर्म किए जा अकर्मण्य तू कभी न बन ।।
अनुपमा जी, कैलाश जी, वीरू भाई, और शकुंतला जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteप्रेम भी स्थायी हो, आनन्द भी स्थायी हो, इसके लिए आवश्यक है संस्कार ही बदल दें.
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