Thursday, March 13, 2014

मधुर अति है सन्त की बानी

अक्तूबर २००५ 
भोजन के समय, भजन के समय, प्रातः काल उठते समय, रात को सोते समय तथा घर से निकलते समय कभी क्रोध नहीं करना चाहिए. आज ये बातें सन्त मुख से सुनीं. सारे भेद भावों से ऊपर उठे हुए सद्गुरु की यही तो निशानी है, उसकी नजर आत्मा पर होती है, वह एक को ही देखता है, भेद-भाव तो हम करते हैं. हमारी दृष्टि भी यदि गुण ग्राहक हो जाये तो एक ही क्षण भी न लगे हमें तरने में. ऊपरी भेद तो मिथ्या हैं, सभी के भीतर एक ही परमात्मा आसीन है, हमें उसी पर दृष्टि रखनी है. अपने भीतर भी उसी शुद्ध चेतना के दर्शन करने हैं.

4 comments:

  1. सभी के भीतर एक ही परमात्मा आसीन है, हमें उसी पर दृष्टि रखनी है. अपने भीतर भी उसी शुद्ध चेतना के दर्शन करने हैं....behad sach...

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  2. सुन्दर विचार सरणी

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  3. प्रिय वाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
    तस्मात् तद् एव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥
    सुभाषित

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  4. वीरू भाई व शकुंतला जी, स्वागत व आभार !

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