सितम्बर २००५
हम वास्तव में कौन हैं ?
कहाँ से आए हैं ? क्यों आए हैं ? हमें क्या करना है ? इन सारे प्रश्नों के उत्तर
यदि किसी को मिल जाएँ तो वह स्वयं के भीतर एक प्रकार के बल का अनुभव करता है. वह
बल यूँ तो सदा से ही उसके पास था पर दिशाविहीन होने के कारण व्यर्थ ही व्यय हो रहा
था. इन सारे प्रश्नों के उत्तरों की खोज का लक्ष्य भी यदि जीवन में हो तो जीवन सरस
बन जाता है. परमात्मा के पास उसी के लिए जाना हो तो भीतर रस का अनुभव किये बिना
नहीं जा सकते, हम तो परमात्मा के पास संसार के लिए ही जाते हैं, जब भीतर सूना
मरुथल है.
इन सारे प्रश्नों के उत्तरों की खोज का लक्ष्य भी यदि जीवन में हो तो जीवन सरस बन जाता है....
ReplyDeleteअंतर्मन में बह रही है निर्मल धारा...खुद को परखने के लिए..
यह खोज ही जीवन की रस धारा है...बहुत सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत उम्दा विचारणीय प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST - फिर से होली आई.
"कब मरिहौं कब देखिहौं पूरन-परमानन्द ।"
ReplyDeleteकबीर
राहुल जी, कैलाश जी, धीरेन्द्र जी व शकुंतला जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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