अक्तूबर २००५
हम जो भी स्थूल कर्म करते
हैं, वास्तव में वे सभी पूर्व कर्मों के परिणाम हैं, हम उनके कर्ता नहीं हैं. जो सूक्ष्म
कर्म हैं, दिखाई नहीं देते, वही बंधन का कारण होते हैं, अतः उन्हें रोकना ही कर्म
त्याग है, इस बात का ज्ञान ही समस्त दुखों से एक साथ छुटकारा पाने का उपाय है. कर्ता
होकर जब तक हम इस जगत में रहते हैं तब तक हम भोक्ता भी बने रहेंगे. तब हम जगत में
रहकर जो भी कर्म करते हैं वह अभिनय मात्र है, उस कर्म का फल वहीं का वहीं समाप्त
हो जाता है.
तब हम जगत में रहकर जो भी कर्म करते हैं वह अभिनय मात्र है, उस कर्म का फल वहीं का वहीं समाप्त हो जाता है.....
ReplyDeleteसौद्देश्य हितकारी लेखन सुन्दर मनोहर विचार सरणी में पगा
ReplyDeleteराहुल जी व वीरू भाई, स्वागत व आभार !
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