Saturday, March 1, 2014

मरना जिसने सीख लिया

अगस्त २००५ 
मृत्यु के समय अंतिम क्षण में हमारे मन के जो भाव होते हैं, अगला जन्म उन्हीं के अनुरूप होता है. वास्तव में एक क्षण से अधिक हमारे पास कभी भी नहीं होता, यदि वर्तमान का यह क्षण शांति से भरा है, तो उसका परिणाम अगला क्षण भी वैसा ही नहीं होगा, यदि यह क्षण दुःख से भरा है तो अगला क्षण उसकी छाया ही होगा. हम जिस क्षण अपने मन को ईश्वर से वियुक्त कर लेते हैं, दुःख के भागी होते हैं क्योंकि उस क्षण अहंकार ही होता है, अहंकार का भोजन दुःख है, वह शांति में बचता ही नहीं, अर्थात जब हम शांत होते हैं, ईश्वर से युक्त होते हैं, क्योंकि तब हम होते ही नहीं, वही होता है. मृत्यु के क्षण में जो शांत है वह परम स्वतंत्र है. 

4 comments:

  1. मृत्यु के क्षण में जो शांत है वह परम स्वतंत्र है......
    अनहद..अनहद..

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  2. अगस्त २००५
    मृत्यु के समय अंतिम क्षण में हमारे मन के जो भाव होते हैं, अगला जन्म उन्हीं के अनुरूप होता है.

    मुख से निकले जय श्रीकृष्णा

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  3. गहन, गंभीर और अर्थपूर्ण ...

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  4. राहुल जी, वीरू भाई व दिगम्बर जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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