अक्तूबर २००५
भीतर
प्रेम भरा हो तो सारा जगत ही प्रेममय लगता है, कितना सच कहते हैं शास्त्र और
संतजन, हमारे भीतर ही वह प्रेम का खजाना है, शांति और आनन्द का खजाना है. हमारे
हाथ जब उसकी चाबी लग जाती है तो जीवन धन्य हो जाता है. उस चाबी की तलाश में ही कोई
लग जाये तो उसका जीवन अर्थवान हो जाता है, हमें संतजन ही बताते हैं कि वह चाबी
कहाँ मिलेगी, कैसे मिलेगी ? लेकिन उसे खोजने की इच्छा हमारे भीतर जगे ऐसी
परिस्थितियाँ ईश्वर हमारे जीवन में उत्पन्न करते हैं. ईश्वर और संतजनों के प्रति
कृतज्ञता व्यक्त करते हुए हमें विनम्रता के साथ ज्ञान को धारण करना होगा. अन्यों
के दोष देखने लगे तो हमारा अभिमान रूपी दोष ही दिखाई देता है. ईश्वर हमें इन सारे
दोषों से बचाना चाहता है इसलिए वह हमें वे दोष दिखाता है न कि स्वयं को विशिष्ट
समझने के लिए. प्रभु कितना दयालु है !
ईश्वर और संतजनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए हमें विनम्रता के साथ ज्ञान को धारण करना होगा. अन्यों के दोष देखने लगे तो हमारा अभिमान रूपी दोष ही दिखाई देता है
ReplyDeleteबहुत सुंदर ,सत्य एवं सार्थक ....!!
सार्थकता लिये सशक्त भाव
ReplyDeleteहोली की अनंत शुभकामनाएं
" बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोय ।
ReplyDeleteजो दिल खोजौं आपना मुझ सा बुरा न कोय।॥"
कबीर
अनुपमा जी, सदा जी व शकुंतला जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteअति सुंदर।
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