अक्तूबर २००५
जब हम कुछ पल के लिए शांत
होते हैं, तो शांति ऊपरी-ऊपरी होती है और जाती है, पर जब हम अन्तर्मुखी होकर गहराई
में जाते हैं तो पता चलता है कि वास्तविक शांति किसे कहते हैं. भीतर जाकर जब पता
चलता है कि विकार कैसे जन्मते हैं, कैसे बनते हैं और कैसे एकत्र होते हैं. एक बार
जब भीतर कोई विकार जगता है तो दुखी होने का कारण पैदा हो ही गया. ऊपर-ऊपर का चित्त
परिमित है और उसके नीचे का वृहत्तर चित्त है. जब तक भीतर वाला चित्त नहीं सुधरता
तब तक बाहर का चित्त कभी शांत कभी अशांत होता ही रहेगा. हम बार-बार एक ही गलती करते
हैं क्यों कि गलती का बीज तो नीचे है, ऊपर से डाली काट देने से क्या होता है, पुनः
नई डाली निकल आती है. जब तक हम जड़ को नहीं काटेंगे तब तक गलती करने का स्वभाव बना
ही रहेगा. हमें यदि सदा के लिए सुख-शांति का अनुभव करना चाहते हैं तो सदा के लिए
विकारों से मुक्त होना पड़ेगा. और इसके लिए भीतर की यात्रा करनी ही होगी.
बहुत सुन्दर सशक्त विचार सरणी
ReplyDeletesahi kaha aapne ...man ki parton ko tatolna hi padta hai usko pane ke liye ....
ReplyDeleteवीरू भाई व उपासना सियाग जी, स्वागत व आभार !
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