सितम्बर २००५
हमारे
मन का प्याला ख्वाहिशों से कभी भी लबालब भर नहीं सकता और भरे बिना उसे चैन नहीं
मिलता, तो उसे भरने का एकमात्र उपाय है उसे सागर में ले जाकर तोड़ दिया जाये या छोड़
दिया जाये. सागर उसमें तभी समा सकेगा जब वह अपनी सीमाएं नहीं बाँधेगा. अहंकार वश
ही हम सीमाएं बांधते हैं, जब अभाव का अनुभव होता रहेगा फिर आनन्द कहाँ से आएगा.
सारे अभाव तभी मिटते हैं जब हम स्वयं में स्थित हो जाते हैं. मन का प्याला जब
आत्मा के सागर में जाकर टूटता है तो कोई अभाव नहीं रहता. तब कुछ पाने की ख्वाहिश
नहीं रहती. भीतर तब प्रकाश ही प्रकाश हो जाता है, बाहर फिर मन नहीं लगता, बार-बार
भीतर ही दौड़ता है. परमात्मा को फिर याद करना नहीं पड़ता वह खुदबखुद याद आता है.
मन का प्याला जब आत्मा के सागर में जाकर टूटता है तो कोई अभाव नहीं रहता. तब कुछ पाने की ख्वाहिश नहीं रहती. भीतर तब प्रकाश ही प्रकाश हो जाता है....
ReplyDeleteसच...और सच...
बात 'सौ आने' सच है!
ReplyDeleteबहुत सुंदर विचारों का सृजन...!
ReplyDeleteRECENT POST - पुरानी होली.
सुखसागर है मञ्जिल अपनी जहॉ बसा है वह परमेश्वर ।
ReplyDeleteराहुल जी, पारुल जी, धीरेन्द्र जी व शकुंतला जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। । होली की हार्दिक बधाई।
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