अगस्त २००५
परमात्मा
अनादि है, अजन्मा है फिर भी वह जन्म लेता है, हम मानवों को ईश्वर का ज्ञान देने के
लिए, जो अपने ही हाथों कभी सुखी कभी दुखी होते रहते हैं और एक दिन यह जगत छोड़कर
चले जाते हैं फिर किसी नये रूप में आकर वही कहानी दोहराते हैं. कृष्ण अर्जुन के
बहाने हम सभी को अपनी शरण में जाने का उपदेश देते हैं, जहाँ प्रेम है, शांति और
आनन्द है, विश्वास है, सत्य है. जहाँ मन समाहित हो जाता है तब तन भी स्वस्थ होगा,
हम अधिक कार्य कर सकेंगे, प्रभु के बनाये इस सुंदर संसार में उसके निमित्त बन
सकेंगे. यह जीवन एक रहस्य है, हमें उसे जीना है, कृष्ण हमें अपनी ओर खींचते हैं
ताकि हम इस खेल में शामिल हों. अपने भीतर ही हमें उसकी झलक मिलती है, ताकि हमें
भरोसा हो जाये कि वह हैं. फिर हम उन्हें और शिद्दत से खोजते हैं पर वह छिपे ही
रहते हैं. हमारे अश्रु भी उन्हें पिघला नहीं पाते, लेकिन इस विरह की अग्नि में
हमारे भीतर का पाप-ताप जल जाता है. मन समता में रहने लगता है, हम उसे न पाकर भी उस
से एक पल के लिए भी दूर नहीं होते.
यह जीवन एक रहस्य है, हमें उसे जीना है, कृष्ण हमें अपनी ओर खींचते हैं ताकि हम इस खेल में शामिल हों....
ReplyDeleteपरमानन्द की अनुभूति दिलाता है आपका पोस्ट...
बहुत सुन्दर है यथार्थ यही है भक्ति भी विरह से ही परवान चढ़ती है। विरह की आग में निखरती है
ReplyDeleteराहुल जी व वीरू भाई, स्वागत व आभार !
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