इकरारे मोहब्बत रहे
वक्त की मौज नहीं
कृष्ण चाहिए मजबूर
कृष्ण की फ़ौज नहीं
कृष्ण
ही हमारी आत्मा हैं. चीन के दार्शनिक लाओत्से ने धर्म को ताओ कहा है, ताओ का अर्थ
है, स्वभाव, यानि आत्मा का धर्म, सहज स्वाभाविक धर्म ! कृष्ण ने गीता में इसी धर्म
को अपनाने की बात कही है, हम जो भी सहज रूप से करते हैं, बिना किसी पाखंड के या
आडम्बर की वही हमारा धर्म है. उसके लिए हमें किसी क आश्रय नहीं लेना पड़ता, भीतर से
ही मार्गदर्शन मिलता है, पर भीतर की उस आवाज को सुनने के लिए मन को खाली करना पड़ता
है. खाली हृदय में वह भीतर का कृष्ण अपनी वंशी की धुन भर देता है, अथवा तो गीता का
ज्ञान भर देता है. उसके बाद जगत में हमारा रास्ता ऐसे ही होता है जैसे ढलान पर से
सहज रूप से किसी वस्तु का फिसलना, कोई आग्रह नहीं तो कोई बाधा भी नहीं,
निर्द्वंद्वता मन का स्वरूप हो जाती है.
...पर भीतर की उस आवाज को सुनने के लिए मन को खाली करना पड़ता है.
ReplyDeleteमेरा भी मानना है कि यह एक कठिन तप है...बेशक कृष्ण तो हमारे भीतर है हीं..
"कृष्णं वन्दे जगत्गुरुम् ।"
ReplyDeleteराहुल जी व शकुंतला जी, स्वागत व आभार !
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