अक्तूबर २००५
शरण में यदि हम आ जाते हैं
तो समय-समय पर हमें भीतर से प्रेरणा मिलती है, उत्साह बढ़ता है तथा हमें प्रतीत होता
है कि हम किसी की छत्रछाया में है, हमें इन्द्रियातीत आनन्द का बोध भी होता है.
सुख-दुःख में सम रहने की कला भी सीखते हैं. शरणागति विनम्र बनाती है. विनम्रता के
बिना हुआ बोध अहंकार को बढ़ाता है. अपने सच्चे कर्त्तव्य का ज्ञान होता है. कई सत्य
उद्घाटित होने लगते हैं. सुख-दुःख जो प्रारब्ध वश है वह तो अपने-आप मिलेगा ही. संसार
हमें जितना मिलना है वह मिलेगा ही आदि. पर ईश्वर प्राप्ति का संकल्प करते ही हमारे
भीतर एक अद्भुत शांति का उदय होता है. धीरे-धीरे यह सम्बन्ध इतना दृढ़ हो जाता है
कि उसमें देश, काल का भी कोई भेद नहीं रहता, वह हर काल में, हर स्थान पर साथ-साथ
रहता है.
शरणागति विनम्र बनाती है.
ReplyDeleteसपरिवार रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाए ....
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इश्वर कि शरण में जाने से अच्छा उपाय भी कोई नहीं है जीवन में शान्ति के लिए ...
ReplyDeleteयह भी अपने हाथ में नहीं ,उसकी कृपा पर ही निर्भर है ।
ReplyDeleteधीरेन्द्र जी, दिगम्बर जी व शकुंतला जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
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