Friday, March 21, 2014

भाव जगत में जो विचरेगा

अक्तूबर २००५ 
जैसे अंगों का प्रत्यारोपण होता है वैसे ही आदतों का प्रत्यारोपण हमें करना है. भगवद् गीता में कहा गया है, भावना के बिना शांति नहीं और शांति हीन को सुख नहीं. हमें सामंजस्य, क्षमा, समता की भावना करनी है, जिससे सम्बन्ध सुमधुर हों. यह भावना से ही सम्भव है, भावना जितनी दृढ होगी, बात उतनी गहरी भीतर तक जाएगी. हमें ऊपर-ऊपर का बदलाव नहीं चाहिए. प्रेम भी स्थायी हो, आनन्द भी स्थायी हो, इसके लिए आवश्यक है संस्कार ही बदल दें. नियमित अभ्यास तथा भाव शुद्धि की इसमें अतीव आवश्यकता है.

6 comments:

  1. ....भावना ही जीवन को सौन्दर्य देती है ....!!बहुत सुंदर बात ...!!
    आभार अनीता जी ...!!

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  2. बहुत सार्थक चिंतन...

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  3. भाव प्रत्यारोप वाह !सुन्दर !

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  4. कर्म पर है अधिकार तुम्हारा कदापि नहीं है फल पर वश ।
    अतः पार्थ तू कर्म किए जा अकर्मण्य तू कभी न बन ।।

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  5. अनुपमा जी, कैलाश जी, वीरू भाई, और शकुंतला जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  6. प्रेम भी स्थायी हो, आनन्द भी स्थायी हो, इसके लिए आवश्यक है संस्कार ही बदल दें.

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